वो तेरी मासूम सी शरारत, चेहरे की मुस्कुराहट।
वो पायलो की छम छम, वो चूड़ियो की खन खन।
जो मेरे दिल का चैन लेती थी, सपनोँ को रंग देती थी।
उसे ढूँढता हूँ अब मै, तन्हाइयोँ मेँ जाकर।
सहमा हुआ रहता हूँ, तेरी आहटो को पाकर।
तेरी जुल्फो मेँ बसी खुशबू, अब फूलो मेँ ढूँढता हूँ।
तेरे छूने से उठी सिहरन, फिज़ा मेँ ढूँढता हूँ।
दिये थे जो गुलाब तूनेँ, किताबो मेँ ढूँढता हूँ।
खतो मेँ लिखे लफ्जो को, इबारत सा पूजता हूँ।
कभी जो लव थे तेरे लव पर, अब वो जामो को चूमते है।
रात दिन राहो पर, तेरे निशां ढूँढते है।
मेरी रुह मेँ ऊतरकर, तुम कहाँ चली गई हो।
था कसूर क्या वो मेरा, जो तुम इतना बदल गई हो।
था कसूर क्या वो मेरा, जो तुम इतना बदल गई हो।
Wednesday, 27 July 2011
Friday, 15 July 2011
आह!
कल से महसूस कर रहा हूँ जैसे किसी अंजान शख्श नेँ अचानक आकर मेरे इन जख्मो को फिर हरा कर दिया है। वो 3 साल पहले का 26/11 का मंजर आँखोँ के सामनेँ आ गया, मेरी रूह काँप उठी.....
ना जाने कब तक मै यूँ ही कभी संसद भवन, मुंबई लोकल जैसे हमलो को याद करता रहूँगा और अफजल गुरु, कसाब जैसे लोगो अदालतो मेँ मौत के बदले मिली रहम पे मुस्कुराता देखुँगा|
उस पर ऊपर से, सियासतदानोँ की अजीब सी टिप्पणीयोँ रुपी नमक को, लोगो के दिलो के जख्मो पे छिडकता देखूँगा, जिन्होँनेँ नेँ अपनोँ को खोया हैँ।
मै ऐक आम आदमी इस देश मेँ कब बेखौफ सङको पे चल सकूँगा।
कल से महसूस कर रहा हूँ जैसे किसी अंजान शख्श नेँ अचानक आकर मेरे इन जख्मो को फिर हरा कर दिया है। वो 3 साल पहले का 26/11 का मंजर आँखोँ के सामनेँ आ गया, मेरी रूह काँप उठी.....
ना जाने कब तक मै यूँ ही कभी संसद भवन, मुंबई लोकल जैसे हमलो को याद करता रहूँगा और अफजल गुरु, कसाब जैसे लोगो अदालतो मेँ मौत के बदले मिली रहम पे मुस्कुराता देखुँगा|
उस पर ऊपर से, सियासतदानोँ की अजीब सी टिप्पणीयोँ रुपी नमक को, लोगो के दिलो के जख्मो पे छिडकता देखूँगा, जिन्होँनेँ नेँ अपनोँ को खोया हैँ।
मै ऐक आम आदमी इस देश मेँ कब बेखौफ सङको पे चल सकूँगा।
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